सलूंबर की कविता • I am Salumbar • Poem •

हैलो दोस्तों , सलूंबर की कविता पढ़ना चाहते हैं तो आप सही साइट पर आए हैं। सलूंबर तहसील का इतिहास भूगोल कला और संस्कृति पर्यटन स्थल, रत्नसिंह और हाड़ी रानी की प्रसिद्ध प्रेम कहानी और ऊटाला के युद्ध का इतिहास आदि का सुंदर वर्णन इस कविता में पढ़ने को मिलेगा। #Salumbar #Poem 


मैं हूं सलुंबर
उदयपुर जिले का प्रमुख नगर, 
16 हजार हैं शहर की जनसंख्या ,
तीन लाख हैं तहसील की जनसंख्या ,
रतन सिंह और हाड़ी रानी की प्रसिद्ध प्रेम कहानी, 
यहां पले है कई महान शुर वीर योद्धा और बलिदानी 

सुंदर है यहां हाड़ी रानी महल, 
सेरिंग तालाब में जल महल, 
थोड़ी दूर है जयसमन्द झील 
यहां रावला फोर्ट जोधसागर महल, 
पहाड़ी पर बैठी सोनार माता,  
थोड़ी दूर है प्रसिद्ध ईडाणा माता, 
यहां शीतलनाथ जैन मंदिर, 
दूध तलाई में दूधेश्वर महादेव मंदिर, 
यहीं पर है बद्रीनाथ रामदेव मंदिर,
प्रसिद्ध है पंचमुखी हनुमान मंदिर, 
और यहां हैं गायत्री शक्ति पीठ मंदिर, 
गणगौर घाट और जवाहर घाट, 
बारी घाट और अमरई घाट, 
ये है सेरिंग तालाब के प्रमुख घाट 


मुझ पर कई सालों तक भीलों ने शासन किया, 
बारहवीं सदी में राठौड़ राव सिन्हा 
ने सलुंबर स्थापित किया, 
महाराणा लाखा का सबसे बड़ा पुत्र था
 राव चुंडा सिसोदिया, 
उनके ही वंशज चुंडावत सरदारों 
ने सलुंबर जीत लिया, 
राव चुंडा सिंघ ने यहां एक शाही 
घराना स्थापित किया 

अब मैं सुनाऊंगा रतन सिंघ चुंडावत की प्रेम कहानी,
 इनकी पत्नी थी बूंदी के हाड़ा वंश की हाड़ी रानी, 
एक सप्ताह विवाह को हुआ यहाँ से शुरू हुई कहानी 

एक दुत आया, 
संग पत्र लाया, 
मेवाड़ी राणा राज सिंह का पत्र थमाया, 
पत्र में औरंगजेब से युद्ध का संदेशा आया
एक ओर राजा की आभूषणों से सजी 
नव विवाहित रानी थी, 
एक ओर  राजा को  मेवाड़ राज्य 
की लाज बचानी थी, 
शौर्य पराक्रम और शत्रुओं का नाश 
यही तो राजपूतों की निशानी थी

युद्ध के लिए राजा हुआ तैयार, 
लेकिन याद आए रानी की बार बार, 
राजा ने एक सैनिक को पास बुलाया , 
रानी से एक प्रेम निशान मंगवाया, 
सेनापति ने ये बात रानी को बताई, 
तब रानी ने उसे यह बात सुनाई,
विजय श्री का वरन करने को देती हूँ अंतिम निशानी,
सेनापति ले जाकर देना 
ये पत्र और वस्त्र से ढकी हुई निशानी
रानी ने पत्र लिखा 
"काट कर सब मोह बंधन, 
भेज रही हूँ अंतिम जीवन, 
आप राजपुताना के लिए कर्तव्यरत रहना,
मै चली स्वर्ग को अपना कर्तव्य भूल ना जाना, 
"राजा मांगी निशानी , 
सिर काट दियो क्षत्राणी"

कमर से निकली तलवार, 
सिर धड़ से अलग किया चलाके तलवार। 
सब सैनिक अचंभित रह गए सारो ओर चौंक छाया,
हाडा रानी का सिर स्वर्ण थाल में सजाया, 
सुहाग की चूनर से रानी के सिर को ओढ़ाया, 
सेनापति ने निशानी को राजा को दिखाया , 
राजा कुछ समझ ना पाया, 
उसने थाल से पर्दा हटाया , 
वीरांगना हाड़ी रानी का 
कटा सिर देख राजा चौंकाया,
 राजा बोला
 'हे क्षत्राणी तूने मुझे मेरा कर्तव्य याद दिलाया, 
शीश गले में धारण कर 
औरंगजेब की सेना को मार भगाया, 
राणा की युद्ध में विजय हुई 
और सारा नगर हर्षाया 

जय मेवाड़, जय रतनसिंह, जय हाड़ी रानी

पराक्रम वीरता और बलिदान की हुई एक और कहानी ,  महाराणा अमरसिंह ने मेवाड़ को आजाद करने की ठानी
इन्होंने कायम खां को मारकर 
ऊटाला दुर्ग को मुगलों से जीत लिया ,  
लेकिन मुगल फौज ऊटाला किले में 
छिप गई और अंदर से किवाड़ बंद किया , 
किले को जीतना मुश्किल हुआ तो 
राणा ने अपने साथियों को उत्साहित किया, 
शक्तावत और चुंडावत के बीच के 
झगड़े को निपटाने का निश्चय किया,

झगड़ा यह था कि अधिक 
वीर कौन है और कौन बनेगा हरावल, 
सेना का अग्रिम भाग और 
सबसे पहले बलिदान देता वह कहलाता था हरावल,
अमरसिंह ने आदेश दिया कि 
जो ऊटाला किले में प्रवेश करेगा वो कहलाएगा हरावल ,
शक्तावतो के राजा थे बल्लू सिंघजी शक्तावत, 
चुंडावतो के राजा थे जैत सिंघजी चुंडावत , 
दोनों वीरों ने ऊटाला किले पर आक्रमण किया , 
मेवाड़ की आजादी के लिए बलिदान दिया।

शक्तावत हाथी से किवाड़ 
तुड़वाने लगे पर तीखे शूलों से तोड़ न पाया ,
फिर बल्लू सिंघ ने के शूलों के 
सामने आकर हाथी से से किवाड़ तुड़वाया

एक ओर जैत सिंघ चुंडावत ने 
सीढ़ियों से किले पर चढ़कर पराक्रम दिखाया,

जैत सिंघजी ने अपना सिर काट कर कीले में फेंका, 
शाही सेना ने भयभीत होकर देखा,  
वहां युद्ध हुआ घमासान, 
कई वीरों का हुआ बलिदान, 

संपूर्ण शाही सेना को मार गिराया, 
मेवाड़ की जीत का झंडा फहराया, 
चुंडावत और शक्तावत के वीर -
योद्धाओं ने इतिहास रचाया,
जय हिन्द, जय मेवाड़।

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