जैसलमेर की शानदार कविता • Jaisalmer Golden City Poem •

हमारे ब्लॉग में आपका स्वागत है। स्वर्ण नगरी जैसलमेर जिले की शानदार कविता पढ़े। हवेलियों का शहर और जैसलमेर, पोकरण, रुणिचा में बाबा रामदेव और थार मरुस्थल के खूबसूरत नजारे इस कविता में पढ़ने को मिलेगा।




 मैं हूं जैसलमेर

कहते मुझको रेगिस्तान का गुलाब और स्वर्ण नगरी।

प्राचीन नाम है मांड प्रदेश 

और झरोखों की नगरी, 

सात लाख जनसंख्या मेरी , 

कहते मुझे म्यूजियम नगरी 

राज्य का सबसे बड़ा जिला हूं, 

38 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में , 

सन 1156 में मुझको बसाया 

भाटी राजा जैसल ने।

हवेलियों का शहर कहते मुझको, 

मान बढ़ाया मेरा थार मरुस्थल ने।

सोने जैसे लगते जैसलमेर के किले,

हवा से बनते यहां रेत के टीले,

प्रसिद्ध जैसलमेर के ढाई साके 

जिसमें दौड़ते ऊंट छबीले।


चारो ओर जहां रेगिस्तान हैं,

गोडावण से भरा मरू उद्यान हैं ,

पैंतालीस डिग्री से अधिक तापमान है ,

रुणिचा में बाबा रामदेवजी का गुणगान है,

मारवाड़ से गुजरात तक जिनकी पहचान है।


स्वर्ण दुर्ग और रेतीले धोरे,

जहाँ आते परदेशी गोरे,

दिखलाओ इतिहास निशानी,

सागर मल गोपा सेनानी,

पोकरण का परमाणु विस्फोट 

बन गई जो भारत की वीर कहानी,

 सालमसिंह और पटवों की हवेली,

बीते कल की छुपी पहेली,

लोक-गीत, संगीत सुनहरा,

मूमल लोकगीत बड़ा प्यारा,

थार वैष्णोदेवी है तनोट माता ,

देखो गड़ीसर झील का नजारा,

देखो बड़ा बाग कितना प्यारा,

आओ कभी हवेली में,

मिलकर देखें गोल्डन सिटी का नजारा, 

जैसल की धरती है प्यारी,

आओ करे ऊंट की सफारी,

करो गुणगान मेरा और

 करे मरू महोत्सव की तैयारी।




पेज को अंत तक देखने के लिए धन्यवाद। दोस्तों आपको ये कविता कैसी लगी कमेंट में बताएं। 

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